November 5, 2011

फिर से नाच रहा है मोर



फिर से नाच रहा है मोर
चिरप्रतीक्षित वर्षा ॠतु आई है,
मैंढक मिलकर शोर मचाते
ले जल काली बदरी आई है।


गरज रहे हैं बादल काले
चमक रही नभ में बिजली है,
सूर्य जा छिपा बादल के पीछे
सतरंगी रंग नभ में छाए हैं।


चिहुँक रहे हैं पंछी सारे
भंवरे भी आज बौराए हैं,
खिल रही हैं सारी कलियाँ
तितली ने रंग बिखराए हैं।


हरित प्रहरी से वृक्ष झूमते
मादक सुमन सुगन्ध छाई है,
हर मन हो रहा आज बाँवरा
सावन ने प्रणय धुन बजाई है।


रिमझिम पड़ती बौछारों से
नई कोंपलें चहुँओर उग आईं हैं,
धरती का आँचल हरा हो गया
अम्बर ने नए वस्त्र पहनाए हैं।


पंख फैलाकर मोर नाचता
मोरनी को उसे लुभाना है,
झूम झूमकर नाच नाचकर
प्रिया को आज रिझाना है।

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