कई सदियों से ...
बंद पलकों में
ठिठके पड़े हैं कुछ आंसू के मोती
लरजते लबों पर ..
थरथरा रही है
कोई बात अनकही...
अपनी कांपती उँगलियों पर
महसूस कर रही हूँ
तेरे उँगलियों की गर्माहट
एक हलकी सी जुम्बिश
तेरे लबों की
जो आ कर थमी है
गर्दन के कोने पर ..
लगता है आज ....
कई सदियों से एक हिम नदी
जिसमें जमे हुए थे
कुछ पुराने लम्हों के अवशेष
वो तेरे इस कद्र करीब होने से
अपनी बात तुझ तक रिस कर
अपनी मंजिल पा ही जायेंगे
और सागर जैसे तेरे दिल में
समां जायेंगे ...........
No comments:
Post a Comment