November 3, 2011

दु:ख को बोझ समझने वाले, कौन तुझे समझाए,


ॐ साईं राम!!!
दु:ख को बोझ समझने वाले,
कौन तुझे समझाए,
साँई तेरी ख़ातिर ख़ुद पर,
कितना बोझ उठाए कितना बोझ उठाए ||
वो ही तेरे प्यार का मालिक,
वो ही तेरे संसार का मालिक,
हैरत से तू क्या तकता है,
दीया बुझ कर जल सकता है,
वो चाहे तो रात को दिन,
और दिन को रात बनाए,
साँई तेरी ख़ातिर ख़ुद पर,
कितना बोझ उठाए कितना बोझ उठाए ||
तन में तेरा कुछ भी नहीं है,
शाम सवेरा कुछ भी नहीं है,
दुनिया की हर चीज़ उधारी,
सब जाएंगे बारी-बारी,
चार दिन के चोले पर काहे इतना इतराए,
साँई तेरी ख़ातिर ख़ुद पर,
कितना बोझ उठाए कितना बोझ उठाए ||

देख खुला है इक दरवाज़ा,
अंदर आकर ले अंदाज़ा,
पोथी-पोथी खटकने वाले,
पड़े हैं तेरी अक्ल पे ताले,
कब लगते हैं हाथ किसी के चलते फिरते साए,
साँई तेरी ख़ातिर ख़ुद पर
कितना बोझ उठाए कितना बोझ उठाए ||

ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!

No comments:

Post a Comment