November 5, 2011

ओ पहाड़, मेरे पहाड़ !

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
बुला ले वापिस पहाड़
मन व्याकुल है पाने को
तेरी ठंडी बयार ।

तेरे चीड़ और देवदार
दाड़िम,काफल और हिसालू
आड़ू,किलमोड़े और स्ट्रॉबेरी
मन होता है खाने को बारबार ।

तेरी साँपों सी वे सड़कें
शेर के मुँह वाले वे नलके
वे चश्मे और वे नौले
वह स्वाद ठंडे मीठे पानी का ।

ऊबड़ खाबड़ वे रस्ते
वे चीड़ के पत्तों की फिसलन
वे सीढ़ीदार खेत तेरे
वे खुशबू वाले धान तेरे ।

नाक से बालों तक जाते
लम्बे और शुभ टीके
वे गोरी सुन्दर शाहनियाँ
वे सुन्दर भोली सैणियाँ ।

स्वस्थ पवन का जोर जहाँ
घुघुती का मार्मिक गीत जहाँ
काफल पाक्यो त्यूल नईं चाख्यो
की होती गूँज जहाँ ।

हर पक्षी कितना अपना है
हर पेड़ जहाँ पर अपना है
कभी शान्त तो कभी चट्टानें
बहा लाने वाली तेरी नदियाँ ।

वे रंग बिरंगे पत्थर
मन चाहे समेटूँ मैं उनको
हीरे भी मुझे न मोह सकें
पर तेरे पत्थरों पर मोहित हूँ ।

वह छोटा सा शिवाला है
वह गोल द्याप्त का मन्दिर है
हर शुभ काम में साथ मेरे
वे गोल देव जो द्याप्त तेरे ।

वह चावल पीस एँपण देना
वह गेरू से लीपा द्वार मेरा
चूड़े अखरोट का नाश्ता
वे सिंहल और वे पुए ।

पयो भात के संग पालक कापा,
और रसीला रसभात तेरा
बाल मिठाई और चॉकलेट
अब और कहूँगी तो रो दूँगी ।

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
सुन ले तू पुकार
मेरे मन की पुकार
ओ पहाड़, मेरे पहाड़ !

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