November 4, 2011

ठोकर खाकर ही होती है इंसान की पहचान।

जीवन के सफर में
एक हमराह मिल गया
दिल था पगला अनायास
खिल गया
पर-------समय का चक्र ?
एक ऐसा वक्त लेकर आया
खिलते हुये दिल को
बेदर्दी से बिलखाया
जिसे हमदर्द समझा था
वो छलिया निकला
पक्षी को जाल में फँसानेवाला
बहेलिया निकला
दिल अपनी नादानी पर
जब पछताता है
मन उसे धीरे-धीरे
प्यार से समझाता है
जो बीत गया उसे भूल जा
कहना मेरा तूँ मान
ठोकर खाकर ही होती है
इंसान की पहचान।

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