पत्नी के बगैर जिनका
एक पल काम चल न पाए
ऐसे लोगों की
जब मति मारी जाए
तो वे पत्नी से लड़ लेते हैं
और कुछ कर तो सकते नहीं
बोलना छोड़ देते हैं।
किसी छोटी सी बात पर
दिल अपना तोड़ लिया था
और
खदेरन ने फुलमतिया जी से
बोलना छोड़ दिया था।
अगले दिन उसे किसी काम से
सुबह चार बजे जाना था
और चार बजे उठने के लिए
फुलमतिया जी को मनाना था।
पर तभी उसका पुरुष अहं आड़े आया
‘पहले बोलना’
उसके मन को नहीं भाया।
बिना बोले भी काम चल जाए
उसने एक तरकीब निकाली
और फुलमतिया जी के नाम
एक चिट्ठी लिख डाली।
खत पर फिर से एक दृष्टिपात किया
और उसे फुलमतिया जी के
सिरहाने रख दिया।
लिखा था,
“देखो इसे तुम मेरा
सीजफ़ायर मत समझ लेना
जाना है ज़रूरी काम से
मुझे चार बजे जगा देना।”
अगली सुबह जब उसकी आंख खुली
तो दीवार घड़ी नौ बजा रही थी।
उसकी ट्रेन तो
कब की जा चुकी थी।
गुस्से से उसका दिमाग भन्नाया
मन ही मन वह पत्नी पर
मन-ही-मन चिल्लाया
‘करम मेरी फूटी
जो इसके साथ लिए सात फेरे
जगा नहीं सकती थी
मुझको सुबह-सवेरे!’
तभी उसकी नज़र सिरहाने पर पड़ी
एक ख़त उसका इंतज़ार कर रहा था
खोला और देखा उसमें लिखा था
“अब हर बात में
मेरा ही दोष मत बताइए।
सुबह के चार बज गये हैं
जाग जाइए।”
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