November 5, 2011

कहाँ जाएँ ?

जब सहारे ही कोमल बेल बन जाएँ
तो बेलें सहारे को कहाँ जाएँ ?
दूर रहने लगें जो मित्र थे अपने
तो मित्र खोजने कहाँ जाएँ ?
जब परछाई ही अपनी डराने लगे
तो निर्भय होने कहाँ जाएँ ?


जब रिसने लगें चट्टानें हीं
तो सिर टकराने कहाँ जाएँ ?
खिसकने लगे पैरों तले की धरती
तो पैर टिकाने कहाँ जाएँ ?
जब सरक जाएँ दीवारें ही अपनी जगह से
तो छत टिकाने को कहाँ जाएँ ?


जब टुकड़ा टुकड़ा आकाश टूटे
तो उन टुकड़ों को लगाने कहाँ जाएँ ?
जलाने लग जाए चाँद गगन का
तो जलन बुझाने कहाँ जाएँ ?
जब घायल कर जाएँ तितलियाँ भी
तो बचने को कहाँ जाएँ ?


जब रुलाने लगें कहकहे भी
तो मुस्कराने को कहाँ जाएँ ?
रूठने लगे जिन्दगी ही जब हमसे
तो जीने को कहाँ जाएँ ?
जब खो दें घर का पता अपना
तो खुद को ढूँढने कहाँ जाएँ ?

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