किसको खुदा और किसको तुम भगवान कहते हो ??
कभी हिन्दू तो कभी खुद को मुसलमान कहते हो
जो कुछ बोलता नही उसे खुदा तो कभी तुम्ही भगवान कहते हो ?
जो खून से खेलता है उसे तुम हैवान कहते हो
तो फिर किस वजेह से खुद को तुम इन्सान कहते हो ?
किसी पत्थर का कोई धर्म नही होता ,
चाहो शिव मान कर पूजा कर लो या फिर इसे मस्जिद के गुम्बद पे लगा दो ,
मरने के बाद किसी को स्वर्ग और जन्नत में भेजने वालों
क्यूँ कहते हो कि लाश को दफना दो या फिर आग लगा दो ?
खाने को तो कसमे खाई जाती हैं इमां के सौदे में भी तो
आखिर किस ईमान को तुम मुकम्मल ईमान कहते हो ?
बे वजह कि उलझनों में उलझ के रहते हो खुद यहा
और इसे धर्म के नाम पर दिया गया इम्तिहान कहते हो ,
जो खुद ही खुदा है और जो भगवान है खुद ही
उसकी रखवाली में आखिर क्यूँ खुद को परेशान कहते हो ?
सरहदों में बाँटना है तो सर उठा के देख लो ऊपर
और इसे बाँटो जिसे तुम आसमान कहते हो ,
एक दिन कहा था आकर के भगवान ने मुझसे ' ऐ राजीव' !
" उसे रोटी - कपडा दो जिसे तुम भूखा-नंगा इन्सान कहते हो .
बताओ प्रेम से " हिन्दू नही मुस्लिम नही बस इन्सान ही हो तुम "
तो उस के लिए तो तुम्ही खुदा हो और भगवान ही हो तुम . ....
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