November 8, 2011

बड़े अजीब हैं ये जिन्दगी के रास्ते,


बड़े अजीब हैं ये जिन्दगी के रास्ते,
अनजान मोड़ पर कुछ लोग दोस्त बन जाते हैं,
मिलने की खुशी दे या न दे,
बिछड़ने का गम जरूर दे जाते हैं
मत करो कोई वायदा जिसे तुम निभा न सको,
मत चाहो उसे जिसे तुम पा न सको,
प्यार कहां किसी का पूरा होता है,
इसका तो पहला शब्द की अधूरा होता है।
मेरी हर खता पर नाराज न होना,
अपनी प्यारी सी मुस्कान कभी न खोना,
सुकून है देख कर आपकी मुस्कुराहट को,
मुझे मौत भी आए तो भी मत रोना।
भूलना तुम्हें न आसान होगा,
जो भूले तुम्हें वो नादान होगा,
आप तो बसते हो रूह में हमारी,
आप हमें न भुलाएं ये आपको अहसान होगा।
कभी किसी से जिक्र-ए-जुदाई मत करना,
इस दिल से कभी रुसवाई मत करना,
जब दिल उठ जाए हमसे तो बता देना,
ना बता कर बेवफाई मत करना।

"खुद से जुदा हुए अब मुझे हो गया जमाना"

कभी कहीं मैं तुम्हे मिल जांऊ किन्ही राहों में,
तो लौटा देना मुझे महफूज मेरी पन्हाओं में,
खुद से जुदा हुए अब मूझे हो गया जमाना,
अपनी तस्वीर भी नहीं बाकी मेरी निगाहों में,
सुबह चला था कि शाम तक लौट आउंगा,
क्या पता था कि यूं सर-ए-बाजार खो जाउंगा,
सबने लूटा मिलके मुझसे बिछड़े हुए मुझको,
जुम्बिश तक भी ना छोड़ी हाथ-पांव में,
क्या जुर्म था मेरा क्या कभी मैं जान पाउंगा
क्या अपनी दास्तान कभी खुद को सुना पाउंगा
क्या एक अजनबी बन के आगे से गुजर जाउंगा
या फिर से भर लूंगा खुद को अपनी बाहों में
नहीं मालूम मुझे अंजाम मेरे इस फसाने का
जिसके हर पन्ने पर दर्द है खुद से बिछड़ जाने का
स्याही का रंग भी है मेरे खून से मिलता जुलता
और हर अल्फाज है धुंधला गम के सायों में
कभी कहीं मैं तुम्हे मिल जाऊं किन्हीं राहों में,
तो लौट देना मुझे महफूज मेरी पन्हाओं में,
खुद से जुदा हुए अब मुझे हो गया जमाना,
अपनी तस्वीर भी नहीं बाकी मेरी निगाहों में

"दिल अभी उदास है"

दिल अभी उदास है,
और वक्त बीता नहीं।
नसीब की किताब से,
हिसाब जीता नहीं।


टूटा है जब भ्रम,
आंखे होती हैं क्यूं नम।
क्यूं मंजिल करीब हो,
तो हार जाते हैं कदम।

ये कौन से सवाल हैं,
जवाब सूझता नहीं।
जहां भर की बात की,
जो बात थी नहीं कही।

वो कौन सी है बेबसी,
वो कौन सा अजब है।
की जिसके रू से आज,
मेरा नाम भी खराब है।

दिल अभी उदास है.......

"तुम खफा हो गए तो कोई खुशी ना रहेगी"

काश! सूरत  तुम्हारी इतनी प्यारी ना होती,
काश! तुम से मुलाकात हमारी ना होती,

काश! तुम्हें सपनों में ही देख लेते,
आज मुलाकात को इतनी बे-करारी ना होती,

हमारा हर लम्हा चुरा लिया तुमने,
आंखों को एक चांद दिखा दिया तुमने,

हमें जिंदगी तो दी किसी और ने,
पर इतना प्यार देकर जीना सिखा दिया तुमने,

चिरागों को और तेज कर दो,
क्यूंकि रोशनी बहुत कम है,

तमाम उम्र इंतजार तेरा मैं कर लूंगा,
फिर भी ये गम रहेगा कि जिंदगी कम है,

हमारे जख्मों की वजह भी वो है,
हमारे जख्मों की दवा भी वो है,

तुम खफा हो गए तो कोई खुशी ना रहेगी,
तेरे बिना चिरागों में रोशनी ना रहेगी,

क्या कहें क्या गुजरेगी दिल पर,
जिंदा तो रहेंगे पर जिंदगी ना रहेगी।

"मुझे खोने से डरती थी..."

मेरी आंखों पे मरता था,
मेरी बातों पे हंसता था,

ना जाने शख्स था कैसा,
मुझे खोने से डरता था,

मुझे जब भी वो मिलता था,
यही हर बार कहता था,

सुनो!!
अगर मैं भूल जाऊं तो?
अगर मैं रूठ जाऊं तो?

कभी वापिस ना आऊं तो?
भूला पाओगी ये सब कुछ?

यूं ही हंसती रहोगी क्या?
यूं ही सजती रहोगी क्या?

यही बातें हैं अब उसकी,
यही यादें हैं अब उसकी,

मुझे बस याद है इतना,
मुझे वो प्यार करती थी,

मुझे खोने से डरती थी।

तेरी चाहत में हद से गुजर जाऊंगा एक दिन,


तेरी चाहत में हद से गुजर जाऊंगा एक दिन,
प्यार होता है क्या ये दिखाऊंगा एक दिन,

तेरी संगदिली को सहते-सहते,
मैं अपनी जान से जाऊंगा एक दिन,

अपनी चाहते सारी तुझपे वार के,
प्यार करना तुझे भी सिखाऊंगा एक दिन,

जी ना पाएगी तु भी हो के जुदा मुझसे,
ऐसा प्यार तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,

अंधेरो में ढूंढ़ती रह जाएगी मुझको,
ऐसी बेरूखी दिखलाऊंगा एक दिन,

खो कर मुझ को बहुत पछताएगी सनम तु,
वफा ऐसी तुझ से कर जाऊंगा एक दिन,

ऐसी दिवानगी से चाहूंगा तुझको,
भूल जाओगी तुम भी सारा जहान एक दिन,
जान तेरी भी लबों पर आ जाएगी,
बन के खाक जब मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा एक दिन।

माँ-बाप को भूलना नहीं

भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।


उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।


पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।


पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।


मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।


अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।


कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।


पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।


लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।


सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।


सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।


जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।


सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।


माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।


जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।


उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।


धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे?


पल पल पावन उन चरण की, चाह कभी भूलना नहीं।।

November 7, 2011

TV9 Gujarat - JDU MLA dancing with girls

 20 फरवरी 2010. बिहार की राजधानी पटना में अगले दिन होने वाली महादलित रैली में भीड़ जुटाने के लिए पूरे राज्य से बाल बालाएं बुलाई गईं। ताकि भीड़ का मनोरंजन हो सके। जिम्मेदारी इलाके के क्षेत्रीय विधायकों को दी गई। नीतिश की पार्टी जनता दल-युनाइटेड के एक विधायक को भी जिम्मेदारी दी गई। जैसे-जैसे रात गहरा रही थी, पूरे मौसम में ठंड बढ़ती जा रही थी लेकिन विधायक श्याम बहादुर सिंह पूरे जोश में थे। बाल बालाएं और कॉलगर्ल को डांस करते हुए देख विधायक साहब के अंदर भी कुछ हुआ। शराब के नशे में धुत विधायक साहब पहुंच गए इनके बीच और फिर शुरू हुआ विधायक का  भौंडा डांस। जब विधायक साहब इन बार बालाओं के साथ नाच रहे थे तो पूरे देश का लोकतंत्र भी नंगा हो रहा था। वह लोकतंत्र जिसकी हम और आप दुहाई देते हैं। यह पूरा आयोजन विधायक आवास के नीचे ही आयोजित किया गया था। एक दर्जन बारबालाएं इसमें शामिल थीं।  विधायक श्याम बहादुर सिंह ने इन बार बालाओं के साथ नशे की हालत में चार घंटे तक जमकर ठुमके लगाए थे।  अब आप खुद तय कीजिए  यह कोई पहली घटना नहीं थी, जब हमारे किसी नेता ने ऐसी हरकत की। पिछले साल की इस घटना को अब दिखाने का मकसद यही है कि हम कब तक ऐसे नेताओं को चुन कर विधानसभा और लोकसभा में भेजेंगे? अब आप खुद तय कीजिए। 

रिमझिम बारिस


रिमझिम रिमझिम बारिस आती,
                                 मन को कितनी ठंडक लाती.

                                     मुरझाये पत्ते हरियाते,
                                     उपवन में पौधे लहराते.
                                     होजाती जीवंत प्रकृति है,
                                     जब काले बादल छा जाते.

                                     जंगल में है मोर नाचता,
                                     भालू अपना ढोल बजाता.
                                     कोयल मीठा गीत सुनाती,
                                     हाथी भी है तान मिलाता.

                                     आओ हम बारिस में भीगें,
                                     झूलों पर लें ऊंची पींगें.
                                     डर कर खड़े हुए क्यों अंदर,
                                     वैसे भरते इतनी डींगें.

                                    
                                     वर्षा गर्मी से है राहत लायी,
                                     हर मन में खुशियाँ हैं छायी.
                                     नया नया सा है सब लगता,
                                     जैसे प्रकृति नहा कर आयी.

November 5, 2011

फिर से नाच रहा है मोर



फिर से नाच रहा है मोर
चिरप्रतीक्षित वर्षा ॠतु आई है,
मैंढक मिलकर शोर मचाते
ले जल काली बदरी आई है।


गरज रहे हैं बादल काले
चमक रही नभ में बिजली है,
सूर्य जा छिपा बादल के पीछे
सतरंगी रंग नभ में छाए हैं।


चिहुँक रहे हैं पंछी सारे
भंवरे भी आज बौराए हैं,
खिल रही हैं सारी कलियाँ
तितली ने रंग बिखराए हैं।


हरित प्रहरी से वृक्ष झूमते
मादक सुमन सुगन्ध छाई है,
हर मन हो रहा आज बाँवरा
सावन ने प्रणय धुन बजाई है।


रिमझिम पड़ती बौछारों से
नई कोंपलें चहुँओर उग आईं हैं,
धरती का आँचल हरा हो गया
अम्बर ने नए वस्त्र पहनाए हैं।


पंख फैलाकर मोर नाचता
मोरनी को उसे लुभाना है,
झूम झूमकर नाच नाचकर
प्रिया को आज रिझाना है।

कहाँ जाएँ ?

जब सहारे ही कोमल बेल बन जाएँ
तो बेलें सहारे को कहाँ जाएँ ?
दूर रहने लगें जो मित्र थे अपने
तो मित्र खोजने कहाँ जाएँ ?
जब परछाई ही अपनी डराने लगे
तो निर्भय होने कहाँ जाएँ ?


जब रिसने लगें चट्टानें हीं
तो सिर टकराने कहाँ जाएँ ?
खिसकने लगे पैरों तले की धरती
तो पैर टिकाने कहाँ जाएँ ?
जब सरक जाएँ दीवारें ही अपनी जगह से
तो छत टिकाने को कहाँ जाएँ ?


जब टुकड़ा टुकड़ा आकाश टूटे
तो उन टुकड़ों को लगाने कहाँ जाएँ ?
जलाने लग जाए चाँद गगन का
तो जलन बुझाने कहाँ जाएँ ?
जब घायल कर जाएँ तितलियाँ भी
तो बचने को कहाँ जाएँ ?


जब रुलाने लगें कहकहे भी
तो मुस्कराने को कहाँ जाएँ ?
रूठने लगे जिन्दगी ही जब हमसे
तो जीने को कहाँ जाएँ ?
जब खो दें घर का पता अपना
तो खुद को ढूँढने कहाँ जाएँ ?

ओ पहाड़, मेरे पहाड़ !

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
बुला ले वापिस पहाड़
मन व्याकुल है पाने को
तेरी ठंडी बयार ।

तेरे चीड़ और देवदार
दाड़िम,काफल और हिसालू
आड़ू,किलमोड़े और स्ट्रॉबेरी
मन होता है खाने को बारबार ।

तेरी साँपों सी वे सड़कें
शेर के मुँह वाले वे नलके
वे चश्मे और वे नौले
वह स्वाद ठंडे मीठे पानी का ।

ऊबड़ खाबड़ वे रस्ते
वे चीड़ के पत्तों की फिसलन
वे सीढ़ीदार खेत तेरे
वे खुशबू वाले धान तेरे ।

नाक से बालों तक जाते
लम्बे और शुभ टीके
वे गोरी सुन्दर शाहनियाँ
वे सुन्दर भोली सैणियाँ ।

स्वस्थ पवन का जोर जहाँ
घुघुती का मार्मिक गीत जहाँ
काफल पाक्यो त्यूल नईं चाख्यो
की होती गूँज जहाँ ।

हर पक्षी कितना अपना है
हर पेड़ जहाँ पर अपना है
कभी शान्त तो कभी चट्टानें
बहा लाने वाली तेरी नदियाँ ।

वे रंग बिरंगे पत्थर
मन चाहे समेटूँ मैं उनको
हीरे भी मुझे न मोह सकें
पर तेरे पत्थरों पर मोहित हूँ ।

वह छोटा सा शिवाला है
वह गोल द्याप्त का मन्दिर है
हर शुभ काम में साथ मेरे
वे गोल देव जो द्याप्त तेरे ।

वह चावल पीस एँपण देना
वह गेरू से लीपा द्वार मेरा
चूड़े अखरोट का नाश्ता
वे सिंहल और वे पुए ।

पयो भात के संग पालक कापा,
और रसीला रसभात तेरा
बाल मिठाई और चॉकलेट
अब और कहूँगी तो रो दूँगी ।

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
सुन ले तू पुकार
मेरे मन की पुकार
ओ पहाड़, मेरे पहाड़ !

जीवन पानी सरिता का

जीवन चलता कभी न रुकता
रूकता तो मंझधार है
जीवन पानी  सरिता का
बहना जिसके ध्येय है ,
अन्तहीन सफर ,कभी अन्धेरे
कभी गतिहीनता है, यह सफर
बडा अनोखा यहां हार जीत का सवाल है
चलते चलते सोचे जरा
यह कौन सा पडाव है
रूक जाये, जब समय भी
टिक- टिक क्या कहती घडी
अपने परायो के फेरों में उलझे रहते है हम।
जो दे जख्मों को उनसे खुशियों
की तमन्ना कैसे हो ।
जीवन फिर भी चलता
गम चाहे , खुशी हो
यह सफर तो कटना है
जीवन चलता कभी न रूकता
रूकता तो मझधार है..................

जिन्दगी कहां ले चली तू मुझे

जिन्दगी कहां ले चली तू मुझे
रास्ता कब खत्म हो गया
सफर तो कही अधूरा- सा
अब कब तूझसे रूबरू
क्या कभी नया ख्वाब .............!
दिखाकर गुम हो जायेगी खुशी
वो कौन सा मोड है जहां
तुझे ढूंढ लूगी मै ........!
जिन्दगी क्या है तेरा नया रंग
किसको जोडू किससे मुंह मोडु
रिश्तें कही न कही
जख्म दे रिसते ही रहे
वो कौन सा आसमां है
जिसे कहूं तू मेरा है........!
अब मेरी जां मेरी भी
नही उस पर हक है                                                                                                                                      किसी न किसी का
जिन्दगी अब क्या है मेरे वास्ते
चाहूं भी तूझमें मेरा अक्श
नही दिखता ...........
कहने को तो है
सितारे बहुत
एक चांद भी अपना नही लगता.......!
परायी जमीन पर
घर की इमारत
प्यारा एक धोखा है
फिर भी धोखे में जिये जा रही है जिन्दगी।

शौक़-ए-शायरी

इन गेसुओ की काली घटा बन गयी है रोशनी मेरी
मदहोश अदा तेरी बन गयी है बेखुदी मेरी
तहय्युर-ए-हुस्न मे न आते थे लब्ज जबाँ पे,तेरे मिलने से पहले 
शौक़-ए-शायरी बन गयी है अब जिंदगी मेरी

मेरा बचपन




बचपन का ज़माना होता था ,खुशियों का खज़ाना होता था .
चाहत चाँद को पाने की ,दिल तितली का दीवाना होता था .
खबर न थी कुछ सुबह की ,न शामों का ठिकाना होता था ।

थक हार के आना स्कूल से ,पर खेलने भी जाना होता था .
दादी की कहानी होती थी ,परियों का फ़साना होता था .
बारिश में कागज की कश्ती थी ,हर मौसम सुहाना होता था ।

हर खेल में साथी होते थे ,हर रिश्ता निभाना होता था .
पापा की वो डांट पर मम्मी का मनाना होता था ॥

गम की जुबान न होती थी ,न ज़ख्मो का पैमाना होता था .
रोने की वजह न होती थी ,न हसने का बहाना होता था ॥
अब नहीं रही वो जिंदगी ,जैसे बचपन का ज़माना होता था ....

माँ उसे मज़बूरी लगती है

माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

फिजूल में रबड़ता , दोस्तों के साथ इधर-उधर
बगल के कमरे में, माँ से मिलना , मीलों की दुरी लगता है ||
वो घंटों लगा रहता है, फेसबुक पे अजनबियों से बतियाने में
अब माँ का हाल जानना, उसे चोरी लगता है ||


खून की कमी से रोज मरती, बेबस लाचार माँ
वो दोस्तों के लिए, शराब की बोतल, पूरी रखता है ||
वो बड़ी कार में घूमता है , लोग उसे रहीस कहते है
पर बड़े मकान में , माँ के लिए जगह थोड़ी रखता है ||

माँ के चरण देखे , एक अरसा बीता उसका ...
अब उसे बीवी का दर, श्रद्धा सबुरी लगता है ||
माँ की दवाई का खर्चा, उसे मज़बूरी लगता है

उसे सिगरेट का धुंआ, जरुरी लगता है ||

जब मति मारी जाए


पत्नी के बगैर जिनका
एक पल काम चल न पाए
ऐसे लोगों की
जब मति मारी जाए
तो वे पत्नी से लड़ लेते हैं
और कुछ कर तो सकते नहीं
बोलना छोड़ देते हैं।

किसी छोटी सी बात पर
दिल अपना तोड़ लिया था
और
खदेरन ने फुलमतिया जी से
बोलना छोड़ दिया था।

अगले दिन उसे किसी काम से
सुबह चार बजे जाना था
और चार बजे उठने के लिए
फुलमतिया जी को मनाना था।

पर तभी उसका पुरुष अहं आड़े आया
‘पहले बोलना’
उसके मन को नहीं भाया।

बिना बोले भी काम चल जाए
उसने एक तरकीब निकाली
और फुलमतिया जी के नाम
एक चिट्ठी लिख डाली।

खत पर फिर से एक दृष्टिपात किया
और उसे फुलमतिया जी के
सिरहाने रख दिया।

लिखा था,
“देखो इसे तुम मेरा
सीजफ़ायर मत समझ लेना
जाना है ज़रूरी काम से
मुझे चार बजे जगा देना।

अगली सुबह जब उसकी आंख खुली
तो दीवार घड़ी नौ बजा रही थी।
उसकी ट्रेन तो
कब की जा चुकी थी।

गुस्से से उसका दिमाग भन्नाया
मन ही मन वह पत्नी पर
मन-ही-मन चिल्लाया
‘करम मेरी फूटी
जो इसके साथ लिए सात फेरे
जगा नहीं सकती थी
मुझको सुबह-सवेरे!’

तभी उसकी नज़र सिरहाने पर पड़ी
एक ख़त उसका इंतज़ार कर रहा था
खोला और देखा उसमें लिखा था
“अब हर बात में
मेरा ही दोष मत बताइए।
सुबह के चार बज गये हैं
जाग जाइए।”

November 4, 2011

ठोकर खाकर ही होती है इंसान की पहचान।

जीवन के सफर में
एक हमराह मिल गया
दिल था पगला अनायास
खिल गया
पर-------समय का चक्र ?
एक ऐसा वक्त लेकर आया
खिलते हुये दिल को
बेदर्दी से बिलखाया
जिसे हमदर्द समझा था
वो छलिया निकला
पक्षी को जाल में फँसानेवाला
बहेलिया निकला
दिल अपनी नादानी पर
जब पछताता है
मन उसे धीरे-धीरे
प्यार से समझाता है
जो बीत गया उसे भूल जा
कहना मेरा तूँ मान
ठोकर खाकर ही होती है
इंसान की पहचान।

बिटिया माँ-बाप के जीवन की धारा होती है


बिटिया


निशा अपने रौ में चली जा रही थी
अपनी भावनाओं में बही जा रही थी
पीछे से दौडते-हाँपते
चाँद-तारों औ-
दसों दिशाओं ने -
आवाज लगाई- रुको,सुनो-
हमारा फैसला करके जाओ
बताओ-हम सब में
सबसे सुन्दर-सबसे अच्छा औ
सबसे चंचल कौन है ?
निशा कुछ देर के लिये रुकी
उनकी ओर झुकी और बोली
सुनो दोस्तों-गर तुम मुझसे
फैसला करवाना ही चाहते हो
मेरा राज मुझसे उगलवाना ही चाहते हो तो सुनो-
तुम सबने अपना नाम तो बताया पर-
इसमें एक नाम जोडना भूल गये
बेशक, तुम सभी अच्छे,सुन्दर औ चंचल हो पर-
बुरा मत मानना यारों
अभी प्रथम नही आने की
तुम्हारी बारी है क्योंकि-
सबसे अच्छी,सबसे सुन्दर औ
सबसे चंचल बिटिया हमारी है
जिसने दी है मेरे जीवन को
एक अपूर्व दिशा
वो है मेरे दिल की धडकन
मेरी बिटिया ईशा
कुछ देर के लिये सभी सकपकाये पर-
भावनाओं के प्रबल वेग को
रोक नही पाये कहा-
हम सभी गर्वमिश्रित झोकों में झूल गये
अपने को याद रक्खा
पर -अपनी बिटिया को कैसे भूल गये
सच ही तो है
बिटिया माँ-बाप के जीवन की
धारा होती है
उनके आँखों में बसनेवाली
सुनहरी तारा होती है।
डाँटर्स डे पर सारी बेटियों के लिये समर्पित है मेरी ये रचना।

मुर्गा बोला


मुर्गा बोला

मुर्गा बोला ....
कुकड़ू कु 
हुआ सबेरा जागो तुम 
दुनियां  जागी 
मुनियाँ जागी 
जाग रहा है 
घर सारा 
मुर्गी रानी 
मान भी जाओ 
तुम बिन मेरा 
कौन सहारा ?




मुर्गी बोली ........

खुद को दयनीय  बताकर 
दिल मेरा हर लेते हो ?
चाँद सितारे मेरे दामन में भरोगे .......
कहकर मुझे सब्जबाग दिखलाते हो ..........
छल करने की ये अनोखी अदा 
किस छलिये से सीखी है ?
देखी होंगी बहुत सारी पर ........
मुझ सी नही देखी होगी 
नही चाहिये चाँद सितारे 
नही महल न हरकारा 
मुर्गे राजा मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .