पत्थरों के इन घरों में
पत्थरों के इन घरों में तो नज़ाकत ही नहीं ।
किस तरह का शहर है जिस में मुहब्बत ही नहीं ।
नाम ना लूँगा कभी बस भूल जाऊँगा उसे ,
पर यह लगता है मेरी ऐसी तबीयत ही नहीं।
पहले आंखों में मुहब्बत फ़िर बहारें पतझडे ,
इस जगह कोई भी ऐसी तो रवायत ही नहीं ।
जब किसी ने हाल पुछा अपना ये उत्तर रहा ,
हाल अपना ठीक है बस दिल सलामत ही नहीं ।
सब उमीदों के दिए मैं तो भुझाने को चला ,
अब कोई आएगा लगता ऐसी सूरत ही नहीं ।
अब आज़ादी ही आज़ादी हर तरफ है दोस्तो,
अब किसी दिल की किसी दिल पे हकुमत ही नहीं।
पर यह लगता है मेरी ऐसी तबीयत ही नहीं।
पहले आंखों में मुहब्बत फ़िर बहारें पतझडे ,
इस जगह कोई भी ऐसी तो रवायत ही नहीं ।
जब किसी ने हाल पुछा अपना ये उत्तर रहा ,
हाल अपना ठीक है बस दिल सलामत ही नहीं ।
सब उमीदों के दिए मैं तो भुझाने को चला ,
अब कोई आएगा लगता ऐसी सूरत ही नहीं ।
अब आज़ादी ही आज़ादी हर तरफ है दोस्तो,
अब किसी दिल की किसी दिल पे हकुमत ही नहीं।
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