मोदी’ न लिखूं तो क्या लिखूं.....? अब आपही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ??कोयले की खान लिखूंया मनमोहन बेईमान लिखूं ?पप्पू पर जोक लिखूंया मुल्ला मुलायम लिखूं ?सी.बी.आई. बदनाम लिखूंया जस्टिस गांगुली महान लिखूं ?शीला की विदाई लिखूंया लालू की रिहाई लिखूं‘आप’ की रामलीला लिखूंया कांग्रेस का प्यार लिखूंभ्रष्टतम् सरकार लिखूँया प्रशासन बेकार लिखू ?महँगाई की मार लिखूंया गरीबो का बुरा हाल लिखू ?भूखा इन्सान लिखूंया बिकता ईमान लिखूं ?आत्महत्या करता किसान लिखूँया शीश कटे जवान लिखूं ?विधवा का विलाप लिखूँ ,या अबला का चीत्कार लिखू ?दिग्गी का 'टंच माल' लिखूंया करप्शन विकराल लिखूँ ?दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखूया टूटे हुए मंदिरों का हाल लिखूँ ?गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूंया हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?जाति और सूबों में बंटा देश लिखूंया बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?नेताओं का महंगा आहार लिखूंया 5 रुपये का थाल लिखूं ?लोकतंत्र का बंटाधार लिखूंया पी.एम्. की कुर्सी पे मोदी का नाम लिखूं ?अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम सेक्या लिखूं" खेलने का मन करता है तो - कलमाडी यादआ जाते हैं...पढ़ने का मन करता है तो - आरक्षण याद आजाता है....रोने का दिल करता है तो -सोनिया का बटला हाउसवाला आँसू यादआ जाता है....सोचता हूँ की पागल हो जाऊं तो-दिग्विजय सिंह यादआ जाते है....सोचता हूँ की मूह बंद कर के रहूं तो -मनमोहन सिंहयाद आ जातेहैं....सोचता हूँ की लोगों का सेवा करूँ तो - झूठे भगोड़ेकजरी याद आ जातेहैं...सोचता हूँ कि कांग्रेस को भूल जाऊं -तो माँ भारती केजख़्म याद आजाते है..औरसोचता हूँ आशा की आखरी किरण तो.."नरेंद्र मोदी'जी"याद आते है...!-नमो नमो नमो नमो..
April 10, 2014
June 7, 2013
ज़िन्दगी इक हबाब
ज़िन्दगी इक हबाब
ज़िन्दगी इक हबाब जैसी है
फिर भी दरिया के ख़्वाब जैसी है
मै तो घंटों ही रोज़ पढ़ता हूँ
याद तेरी किताब जैसी है
चाँद आधा भी क्या क़यामत है
फिर घटा भी हिजाब जैसी है
उम्र-भर का सवाल था मेरा
पर तेरी चुप जवाब जैसी है
हमको मालूम नहीं वफ़ा तेरी
बेवफ़ाई ख़िताब जैसी है
ज़िन्दगी उन को रास आती है
बात जिनमें उक़ाब जैसी है
तेरे हाथों में ज़हर भी मुझ को
लग रही कुछ शराब जैसी है
अब कोई शोर न सुनाई दे
दिल की धड़कन रबाब जैसी है
फिर भी दरिया के ख़्वाब जैसी है
मै तो घंटों ही रोज़ पढ़ता हूँ
याद तेरी किताब जैसी है
चाँद आधा भी क्या क़यामत है
फिर घटा भी हिजाब जैसी है
उम्र-भर का सवाल था मेरा
पर तेरी चुप जवाब जैसी है
हमको मालूम नहीं वफ़ा तेरी
बेवफ़ाई ख़िताब जैसी है
ज़िन्दगी उन को रास आती है
बात जिनमें उक़ाब जैसी है
तेरे हाथों में ज़हर भी मुझ को
लग रही कुछ शराब जैसी है
अब कोई शोर न सुनाई दे
दिल की धड़कन रबाब जैसी है
पत्थरों के इन घरों में
पत्थरों के इन घरों में
पत्थरों के इन घरों में तो नज़ाकत ही नहीं ।
किस तरह का शहर है जिस में मुहब्बत ही नहीं ।
नाम ना लूँगा कभी बस भूल जाऊँगा उसे ,
पर यह लगता है मेरी ऐसी तबीयत ही नहीं।
पहले आंखों में मुहब्बत फ़िर बहारें पतझडे ,
इस जगह कोई भी ऐसी तो रवायत ही नहीं ।
जब किसी ने हाल पुछा अपना ये उत्तर रहा ,
हाल अपना ठीक है बस दिल सलामत ही नहीं ।
सब उमीदों के दिए मैं तो भुझाने को चला ,
अब कोई आएगा लगता ऐसी सूरत ही नहीं ।
अब आज़ादी ही आज़ादी हर तरफ है दोस्तो,
अब किसी दिल की किसी दिल पे हकुमत ही नहीं।
पर यह लगता है मेरी ऐसी तबीयत ही नहीं।
पहले आंखों में मुहब्बत फ़िर बहारें पतझडे ,
इस जगह कोई भी ऐसी तो रवायत ही नहीं ।
जब किसी ने हाल पुछा अपना ये उत्तर रहा ,
हाल अपना ठीक है बस दिल सलामत ही नहीं ।
सब उमीदों के दिए मैं तो भुझाने को चला ,
अब कोई आएगा लगता ऐसी सूरत ही नहीं ।
अब आज़ादी ही आज़ादी हर तरफ है दोस्तो,
अब किसी दिल की किसी दिल पे हकुमत ही नहीं।
....बुढ़ापा छुटकारा चाहता है
मैं अकेला हूं, सूनसान हूं, वीरान हूं। यह मुझे मालूम है कि मेरा जीवन बीत चुका। कुछ सांसें शेष हैं- कब रुक जाएं क्या पता?
मैंने हर रंग को छूकर देखा है, चाहें वह कितना उजला, चाहें वह धुंधला हो। उन्हें सिमेटा, जितना मुटठी में भर सका, उतना किया। रंग छिटके भी और उनका अनुभव जीवन में बदलाव लाता रहा। मैं बदलता रहा, माहौल बदलता रहा, लोग भी।
चश्मे में मामूली खरोंच आयी। दिखता अब भी है, मगर उतना साफ नहीं। सुनाई उतना साफ नहीं देता। लोग कहते हैं,‘‘बूढ़ा ऊंचा सुनता है।’’ लोग पता नहीं क्या-क्या कहते हैं।
जब जवानी में फिक्र नहीं की, फिर बुढ़ापे में शर्म कैसी?
कुछ लोग यह कहते सुने हैं,‘‘बूढ़ा पागल है।’
हां, बुढ़ापा पागल होता है, बाकि सब समझदार हैं।
जवानों की जमात में ‘कमजोर’ कहे जाने वाले इंसानों का क्या काम? सदा जमाने ने हमसे किनारा किया। हमें बेगाना किया। इसमें अपनों की भूमिका ज्यादा रही।
इतना कुछ घट चुका, इतना कुछ बीत चुका। पर लगता नहीं कि इतनी जल्दी इतना घट गया। जीवन वाकई एक सपने की तरह है। थोड़े समय पहले हम नींद में थे, अब जाग गये। शायद आखिरी नींद लेने के लिए। चैन की अंतिम यात्रा हमारे लिए शुभ हो।
मैं बिल्कुल टूटा नहीं। यह लड़ाई खुद से है जिसे मुझे लड़ना है। समर्पण नहीं करुंगा। संघर्ष मैंने जीवन से सीखा है।
विपत्तियों को धूल की तरह उड़ाता हुआ चलना चाहता हूं। हारना नहीं चाहता मैं। बिल्कुल नहीं। वैसे भी हारने के लिए मेरे पास बचा ही क्या है? इतना कुछ गंवा चुका, बस चाह है मोक्ष पाने की। चाह है फिर से न लौट कर आने की।
बुढ़ापा चाहता है छुटकारा, बहुत सह चुका, बस आराम की चाह है।
मैंने हर रंग को छूकर देखा है, चाहें वह कितना उजला, चाहें वह धुंधला हो। उन्हें सिमेटा, जितना मुटठी में भर सका, उतना किया। रंग छिटके भी और उनका अनुभव जीवन में बदलाव लाता रहा। मैं बदलता रहा, माहौल बदलता रहा, लोग भी।
चश्मे में मामूली खरोंच आयी। दिखता अब भी है, मगर उतना साफ नहीं। सुनाई उतना साफ नहीं देता। लोग कहते हैं,‘‘बूढ़ा ऊंचा सुनता है।’’ लोग पता नहीं क्या-क्या कहते हैं।
जब जवानी में फिक्र नहीं की, फिर बुढ़ापे में शर्म कैसी?
कुछ लोग यह कहते सुने हैं,‘‘बूढ़ा पागल है।’
हां, बुढ़ापा पागल होता है, बाकि सब समझदार हैं।
जवानों की जमात में ‘कमजोर’ कहे जाने वाले इंसानों का क्या काम? सदा जमाने ने हमसे किनारा किया। हमें बेगाना किया। इसमें अपनों की भूमिका ज्यादा रही।
इतना कुछ घट चुका, इतना कुछ बीत चुका। पर लगता नहीं कि इतनी जल्दी इतना घट गया। जीवन वाकई एक सपने की तरह है। थोड़े समय पहले हम नींद में थे, अब जाग गये। शायद आखिरी नींद लेने के लिए। चैन की अंतिम यात्रा हमारे लिए शुभ हो।
मैं बिल्कुल टूटा नहीं। यह लड़ाई खुद से है जिसे मुझे लड़ना है। समर्पण नहीं करुंगा। संघर्ष मैंने जीवन से सीखा है।
विपत्तियों को धूल की तरह उड़ाता हुआ चलना चाहता हूं। हारना नहीं चाहता मैं। बिल्कुल नहीं। वैसे भी हारने के लिए मेरे पास बचा ही क्या है? इतना कुछ गंवा चुका, बस चाह है मोक्ष पाने की। चाह है फिर से न लौट कर आने की।
बुढ़ापा चाहता है छुटकारा, बहुत सह चुका, बस आराम की चाह है।
March 25, 2013
BURA NAA MAANO HOLI HAI
Holi Tyohar Hai Rang Aur Bhaang Ka
Hum Sab Yaaron Ka
Ghar Mein Aaye Mehmano Ka
Gali Mein Gali Walon Ka
Mohalle Mein Mahaul Waalon Ka
Desh Mein Deshwalon Ka
Bura Naa Maano Holi Hai, Holi Hai, Bhai Holi Hai…
Hum Sab Yaaron Ka
Ghar Mein Aaye Mehmano Ka
Gali Mein Gali Walon Ka
Mohalle Mein Mahaul Waalon Ka
Desh Mein Deshwalon Ka
Bura Naa Maano Holi Hai, Holi Hai, Bhai Holi Hai…
March 17, 2013
कुछ तो ऐसा करें ज़माने में..
Sunday , 17 march 2013
कुछ तो ऐसा करें ज़माने में..
कुछ तो ऐसा करें ज़माने में
वक़्त लग जाए हमें भुलाने में
काम आसाँ नहीं चलो माना
हर्ज़ क्या है आज़माने में
अब कोई ताज नहीं बनाना है
न ख्यालों में कोई खज़ाना है
किसी भूले को रास्ता मिल जाए
लुत्फ़ है हंसने और हंसाने में
हर तरफ खुशियों की बहारे हों
चैन हो दिल में सुकून आँखों में
एक ऐसा जहाँ जो बन पाए
"दीप" अफ़सोस नहीं जलजाने में
कुछ तो ऐसा करें ज़माने में ....
वक़्त लग जाए हमें भुलाने में
काम आसाँ नहीं चलो माना
हर्ज़ क्या है आज़माने में
अब कोई ताज नहीं बनाना है
न ख्यालों में कोई खज़ाना है
किसी भूले को रास्ता मिल जाए
लुत्फ़ है हंसने और हंसाने में
हर तरफ खुशियों की बहारे हों
चैन हो दिल में सुकून आँखों में
एक ऐसा जहाँ जो बन पाए
"दीप" अफ़सोस नहीं जलजाने में
कुछ तो ऐसा करें ज़माने में ....
posted by ankit vijay
मिलती हो तुम बस ख्यालों में..
Sunday, march 17, 2013
मिलती हो तुम बस ख्यालों में..
मोहब्बत की होटों पे सुर्खी चढ़ाके
पलकों पे काजल शरम का लगाके
माथे पे चंदा की बिंदिया सजाके
मिलती हो तुम बस ख्यालों में आके
हर रोज़ दिल में सजाते हैं तुमको
और भी खूबसूरत बनाते हैं तुमको
तस्वीर दिल में में जो देखोगी अपनी
रह न सकोगी कहीं और जाके
उम्मीद में रात कितनी बिताएं
सवेरा कोई तो तुम्हे लेके आये
ख्वाइश मेरी "दीप" कहती है हमसे
जी भर के देखें तुमको बिठाके
हमें इस कदर यूँ दीवाना बनाके
क्यों मिलती हो तुम बस ख्यालों में आके..
पलकों पे काजल शरम का लगाके
माथे पे चंदा की बिंदिया सजाके
मिलती हो तुम बस ख्यालों में आके
हर रोज़ दिल में सजाते हैं तुमको
और भी खूबसूरत बनाते हैं तुमको
तस्वीर दिल में में जो देखोगी अपनी
रह न सकोगी कहीं और जाके
उम्मीद में रात कितनी बिताएं
सवेरा कोई तो तुम्हे लेके आये
ख्वाइश मेरी "दीप" कहती है हमसे
जी भर के देखें तुमको बिठाके
हमें इस कदर यूँ दीवाना बनाके
क्यों मिलती हो तुम बस ख्यालों में आके..
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